प्रतिक्रिया | Friday, April 25, 2025

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ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) प्रणाली ने कल्याणकारी योजनाओं में रिसाव को रोककर देश को अनुमानित 3.48 लाख करोड़ रुपए बचाने में मदद की है। मूल्यांकन बजटीय दक्षता, सब्सिडी युक्तिकरण और सामाजिक परिणामों पर डीबीटी के प्रभाव की जांच करने के लिए 2009 से 2024 तक के आंकड़ों का विश्‍लेषण किया गया। इस रिपोर्ट को वित्त मंत्रालय ने साझा किया है।

रिपोर्ट में बताया गया कि डीबीटी के कार्यान्वयन के बाद से सब्सिडी आवंटन कुल सरकारी व्यय के 16 प्रतिशत से घटकर 9 प्रतिशत रह गया है, जो सार्वजनिक व्यय की दक्षता में एक बड़ा सुधार दर्शाता है। आंकड़ों से पता चलता है कि कागज़-आधारित वितरण से सीधे डिजिटल हस्तांतरण में बदलाव ने यह सुनिश्चित किया है कि सार्वजनिक धन उन लोगों तक पहुंचे जिनके लिए वे हैं।

डीबीटी की प्रमुख विशेषताओं में से एक जेएएम ट्रिनिटी का उपयोग है, जिसका अर्थ है, जन धन बैंक खाते, आधार विशिष्ट पहचान संख्या और मोबाइल फोन। इस ढांचे ने बड़े पैमाने पर लक्षित और पारदर्शी हस्तांतरण को सक्षम किया है।

रिपोर्ट में कल्याणकारी दक्षता सूचकांक पेश किया गया है। यह सूचकांक बचत और कम सब्सिडी जैसे राजकोषीय परिणामों को लाभार्थियों की संख्या जैसे सामाजिक संकेतकों के साथ जोड़ता है, जिससे यह स्पष्ट तस्वीर मिलती है कि प्रणाली कितनी अच्छी तरह काम कर रही है। यह सूचकांक 2014 में 0.32 से लगभग तीन गुना बढ़कर 2023 में 0.91 हो गया है, जो प्रभावशीलता और समावेशन दोनों में तेज वृद्धि को दर्शाता है।

ऐसे समय में जब दुनिया भर की सरकारें सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करने के तरीकों पर पुनर्विचार कर रही हैं, डीबीटी मॉडल वित्तीय विवेक को न्यायसंगत शासन के साथ संरेखित करने में मूल्यवान सबक प्रस्तुत करता है।

सब्सिडी आबंटन के आंकड़ों से डीबीटी कार्यान्वयन के बाद महत्वपूर्ण बदलाव का पता चलता है, जो लाभार्थी कवरेज में वृद्धि के बावजूद राजकोषीय दक्षता में सुधार को उजागर करता है।

डीबीटी के पहले दौर (2009-2013) में सब्सिडी कुल व्यय का औसतन 16 प्रतिशत थी, जो सालाना 2.1 लाख करोड़ रुपए थी तथा प्रणाली में काफी रिसाव था। डीबीटी के बाद के दौर (2014-2024) में सब्सिडी व्यय 2023-24 में कुल व्यय का 9 प्रतिशत तक कम हो गया, जबकि लाभार्थी कवरेज 16 गुना बढ़कर 11 करोड़ से 176 करोड़ हो गया।

खाद्य सब्सिडी (पीडीएस)-1.85 लाख करोड़ रुपए की बचत हुई, जो कुल डीबीटी बचत का 53 प्रतिशत है। यह मुख्य रूप से आधार से जुड़े राशन कार्ड प्रमाणीकरण के कारण संभव हुआ।

वहीं, मनरेगा में 98 प्रतिशत मजदूरी समय पर हस्तांतरित की गई, डीबीटी-संचालित जवाबदेही के माध्यम से 42,534 करोड़ रुपए की बचत हुई। पीएम-किसान-योजना से 2.1 करोड़ अयोग्य लाभार्थियों को हटाकर 22,106 करोड़ रुपये की बचत हुई। उर्वरक सब्सिडी-158 लाख मीट्रिक टन उर्वरक की बिक्री कम हुई, जिससे लक्षित वितरण के माध्यम से 18,699.8 करोड़ रुपए की बचत हुई।

दरअसल, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (सब्सिडी) प्रणाली देश की कल्याणकारी वितरण के लिए एक परिवर्तनकारी उपकरण साबित हुई है, जो सार्वजनिक खर्च की दक्षता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाती है और सामाजिक लाभों की पहुंच का विस्तार करती है। ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, राजकोषीय विवेक और समावेशिता एक साथ चल सकते हैं, जो दुनिया भर के नीति निर्माताओं को अपने स्वयं के सामाजिक सुरक्षा मॉडल को परिष्कृत करने के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

 

 

 

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आखरी अपडेट: 25th Apr 2025